घमण्ड़ जो न कराये!
एक आदमी को इस बात पर बहुत घमण्ड था कि मेरे बिना मेरा परिवार नहीं चल सकता, उसकी एक छोटी सी किराने की दुकान थी उससे जो भी कमाई होती थी, उसी से परिवार का गुजारा चलता था, क्योंकि पूरे घर में कमाने वाला वह अकेला ही था इसलिए उसे लगता था कि उसके बगैर सब भूखे मरेंगे।
एक दिन वह पूर्ण संत जी के सत्सँग में गया, सन्त जी ने उस पर दृष्टि डाली और फरमाया, यह घमण्ड झूठा और फिजूल है कि मेरे बिना मेरा परिवार भूख से मर जायेगा, मैं ही सब को खाना खिलाता हूँ, ये सब मेरे प्रभु की लीला है, वो तो पत्थरों के नीचे रहने वाले जीवों को भी भोजन पहुँचाता है, उस आदमी के मन में कई सवाल उठने लगे।
सत्संग समाप्त होने के बाद, उस आदमी ने सन्त जी से कहा कि मैं दिन भर कमाकर जो पैसे लाता हूं उसी से मेरे घर का खर्च चलता है, मेरे बिना तो मेरे परिवार के लोग जल्दी ही भूखे मर जाएंगे।
सन्त जी ने उसे बड़े ही प्यार से समझाया, बेटा यह तुम्हारे मन का भ्रम है, हर कोई अपने भाग्य का ही खाता है, वो आदमी बोला यदि ऐसा है तो आप मुझे साबित करके दिखाओ।
सन्त जी ने हँस कर कहा, ठीक है बेटा , तुम बिना किसी को बताए, अपने घर से एक महीने के लिए चले जाओ, उसने पूछा कि मेरे परिवार का ध्यान कौन रखेगा, सन्त जी ने समझाया बेटा परमात्मा सब का ध्यान रखता है, तुम्हें यही तो देखना है, वो चुपचाप चला गया और कुछ दिनों के बाद गाँव में ये अफवाह फैल गई कि उसे शेर खा गया होगा।
उसके परिवार वाले कई दिनों तक उसे ढूँढते भी रहे और रोते भी रहे लेकिन उसका कुछ पता नहीं चला, आखिर कार गाँव के कुछ भले लोग उनकी मदद के लिए आ गये। एक सेठ ने उसके बड़े लड़के को अपने यहाँ नौकरी दे दी, गाँव वालों ने मिलकर उसकी बेटी की शादी कर दी । एक भला आदमी उसके छोटे बेटे की पढ़ाई का पूरा खर्च देने को तैयार हो गया।
एक महीने बाद वही आदमी छिपता छिपाता रात के वक्त अपने घर लौट आया, पहले तो घर वालों ने भूत समझकर दरवाजा ही नहीं खोला, जब वह बहुत गिड़गिड़ाया और उसने सन्त जी से हुई सारी बातें बताई तो उसकी बीवी ने कहा कि अस हमें तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है, अब तो हम पहले से भी ज्यादा सुखी हैं, उस आदमी का सारा घमण्ड चूर-चूर हो गया। वो रोता हुआ, सन्त जी के डेरे पर चला गया और कहने लगा कि मुझे माफ कर दो, सन्त जी ने बड़े प्यार से कहा, अब तुम्हें अपने घर वापिस जाने की क्या ज़रूरत है?
बेटा, इस जगत को चलाने का दावा करने वाले बडे बडे बादशाह, मिट्टी हो गए, दुनिया उनके बिना भी चलती रही इसलिए अपनी ताकत का, अपने पैसे का, अपने काम काज का, अपने ज्ञान का घमण्ड फिजूल है, अब तुम्हें बाकी का सारा जीवन मालिक की भक्ति में और लाचारों की सेवा में लगा कर इसे सफल करना है।
वो आदमी सन्त जी के चरणों में गिर पड़ा और रोते हुए बोला, आप जो भी कहेंगे, आज से मैं वही करूँगा।
शिक्षा
एक बार सोचना ज़रूर, कहीं हम भी किसी चीज़ का घमण्ड तो नहीं कर रहे है।
ये साखी भी पढ़ें:-
एक बहुत बड़ा अमीर आदमी था। उसने अपने गांव के सब गरीब लोगों के लिए, भिखमंगों के लिए माहवारी दान बांध दिया था। किसी भिखमंगे को दस रुपये मिलते महीने में, किसी को बीस रुपये मिलते। वे हर एक तारीख को आकर अपने पैसे ले जाते थे। वर्षों से ऐसा चल रहा था। एक भिखमंगा था जो बहुत ही गरीब था और जिसका बड़ा परिवार था। उसे पचास रुपये महीने मिलते थे। वह हर एक तारीख को आकर अपने रुपये लेकर जाता था।
एक तारीख आई। वह रुपये लेने आया, बूढ़ा भिखारी। लेकिन धनी के मैनेजर ने कहा कि भई, थोड़ा हेर-फेर हुआ है। पचास रुपये की जगह सिर्फ पच्चीस रुपये अब से तुम्हें मिलेंगे। वह भिखारी बहुत नाराज हो गया। उसने कहा, क्या मतलब? सदा से मुझे पचास मिलते रहे हैं। और बिना पचास लिए मैं यहां से न हटूंगा। क्या कारण है पच्चीस देने का? मैनेजर ने कहा कि जिनकी तरफ से तुम्हें रुपये मिलते हैं उनकी लड़की का विवाह है और उस विवाह में बहुत खर्च होगा। और यह कोई साधारण विवाह नहीं है। उनकी एक ही लड़की है, करोड़ों का खर्च है। इसलिए अभी संपत्ति की थोड़ी असुविधा है। पच्चीस ही मिलेंगे। उस भिखारी ने जोर से टेबल पीटी और उसने कहा, इसका क्या मतलब? तुमने मुझे क्या समझा है? मैं कोई बिरला हूं? मेरे पैसे काट कर और अपनी लड़की की शादी? अगर अपनी लड़की की शादी में लुटाना है तो अपने पैसे लुटाओ।
कई सालों से उसे पचास रुपये मिल रहे हैं; वह आदी हो गया है, अधिकारी हो गया है; वह उनको अपने मान रहा है। उसमें से पच्चीस काटने पर उसको विरोध है।
तुम्हें जो मिला है जीवन में, उसे तुम अपना मान रहे हो। उसमें से कटेगा तो तुम विरोध तो करोगे, लेकिन उसके लिए तुमने धन्यवाद कभी नहीं दिया है।
इस भिखारी ने कभी धन्यवाद नहीं दिया उस अमीर को आकर कि तू पचास रुपये महीने हमें देता है, इसके लिए धन्यवाद। लेकिन जब कटा तो विरोध।
जीवन के लिए तुम्हारे मन में कोई धन्यवाद नहीं है, मृत्यु के लिए बड़ी शिकायत। सुख के लिए कोई धन्यवाद नहीं है, दुख के लिए बड़ी शिकायत। तुम सुख के लिए कभी धन्यवाद देने मंदिर गए हो? दुख की शिकायत लेकर ही गए हो जब भी गए हो।
जब भी तुमने परमात्मा को पुकारा है तो कोई दुख, कोई पीड़ा, कोई शिकायत। तुमने कभी उसे धन्यवाद देने के लिए भी पुकारा है? जो तुम्हें मिला है उसकी तरफ भी तुम पीठ किए खड़े हो। और इस कारण ही तुम्हें जो और मिल सकता है उसका भी दरवाजा बंद है।
निश्चित ही, परमात्मा का नियम तो निष्पक्ष है, लेकिन तुम नासमझ हो। और जो तुम्हें मिल सकता है, जो तुम्हें मिलने का पूरा अधिकार है, वह भी तुम गंवा रहे हो। लेकिन वह तुम अपने कारण गंवा रहे हो; उसका जिम्मा परमात्मा पर नहीं है।